अगर यूँ ही यह दिल सताता रहे गा
तो इक दिन मेरा जी ही जाता रहे गा
मैं जाता हूँ दिल को तेरे पास छोड़े
मेरी याद तुझ को दिलाता रहे गा
गली से तेरी दिल को ले तो चला हूँ
मैं पहुंचूं गा जब तक, यह आता रहे गा
जफा से ग़रज़ इम्तेहाने वफा है
तू कि कब तलुक आज़माता रहे गा
क़फ़स में कोई, तुम में से,हम सफीरो
ख़बर कल की हम को सुनाता रहे गा
ख़फा हो के, ऐ दर्द, मर तू चला तो
खान तक ग़म अपना छिपता रहे गा
रचनाकार: ख्वाजा मीर दर्द देहलवी
अच्छी रचना।
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