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MAY PEACE BE UPON YOU

12/31/2009

उस को यह नया साल मुबारक

आमद पे नए साल की सर जोड़ के बैठें
कर्तब्य हमारा है क्या? कुछ देर यह सोचें

पुर्खों ने हमारे था किया जान क्यों कुर्बान
थे भीड़ गए अँगरेज़ से हिन्दू कि मुसलमान

था ख्वाब कि भारत के मुकद्दर को बदल दें
आज़ाद कराएँ उसे, ख़ुशहाल भी कर दें

जिस देश का इक स्वप्न सजाया था उन्हों ने
ग़ुरबत थी न उस में, न हर रोज़ के दंगे

वह ऐसा था भारत जहाँ हर एक था भाई
दुःख सुख में सभी साथ थे सिख हूँ कि ईसाई

मज़हब की बिना पर न वहाँ लोग झगड़ते
सरहद के लिए, भाषा पे आपस में न लड़ते

अफ़सोस! कि आज वह भारत न यहाँ है
इस देश में छाया हुआ जंगल का समां है

मस्जिद को कहीं कोई गिराने में लगा है
बम फोड़ के लोगों को डराने में लगा है

होते यहाँ मंदिर पे, कभी चर्च पे हमले
गुजरात में वह खून की होली नहीं भूले

हैं ऊंच ब्राह्मण अब भी, नीच दलित हैं
हम सभ्य हैं, लेकिन छुआछूत बहुत है

देखो इसे भाई को ही आतंकी कहे है
कल दोस्त था जो, आज वही शत्रु बने है

आपस में छिड़ा युद्ध यह देखा नहीं जाता
हम रोकते इस को, जो कोइ साथ में आता

बस मेरा चले सब को गले जा के लगाऊँ
जो आग है नफरत की उसे जा के बुझाऊँ

आवाज़ यह हामिद की कोई काश कि सुन ले
थे छोड़ ग़लत काम, इरादों को वह बदले

इस देश की ख़ातिर वह कुछ कर के दिखाए
इस के लिए वह माल भी जां अपनी लगाये

मिल जुल के रहें लोग यही उस की हो ख्वाहिश
वह लाभ दे सब को, है करे जैसे कि बारिश

जो ऐसा हो उस को यह नया साल मुबारक
उस को यह दहा, उस के खेयालात मुबारक

12/27/2009

पहले की तरह

पहुँच अचानक उस ने मेरे घर पर
लाड़ भरे स्वर में कहा ठहर कर
"अरे... सब-कुछ पहले जैसा है
सब वैसा का वैसा है...
पहले की तरह..."

फिर शांत नज़र से उस ने मुझे घूरा
लेकिन कहीं कुछ रह गया अधूरा

उदास नज़र से मैं ने उसे ताका
फिर उस की आँखों में झाँका

मुस्काई वह, फिर चहकी चिड़िया-सी
हँसी ज़ोर से किसी बहकी गुड़िया-सी

चूमा उस ने मुझे, फिर सिर को दिया खम
बरसों के बाद इस तरह मिले हम
पहले की तरह

रचनाकार: अनिल जनविजय
कविता कोश

अब वह मेरी पत्नी है

एक दोस्त दुसरे से: यार उस लड़की का हाल तो बताओ जिस के साथ तुम हर दिन टहला करते थे.
दूसरा दोस्त: मेरे और उस के सम्बन्ध बहुत अच्छे थे. एक दिन मैं ने उस से ग़ुस्से में कह दिया कि " मैं तुम से मुहब्बत वहब्बत नहीं करता हूँ. में तो तुम्हें धोका दे रहा था." यह सुन कर वह ग़ुस्से से लाल हो गई और कांपते हुए बोली, "में तुम्हारी चीटिंग का ऐसा बदला लूं गी कि तुम सारी उम्र रोते रहो गे."
दूसरा दोस्त बेताबी से: तो फिर क्या हुआ? क्या वह बदला लेने में सफल हो गई?
दोस्त: यार मैं समझता हूँ कि वह कामयाब हो गयी है. इस लिये कि अब वह मेरी पत्नी है.

12/25/2009

थोड़ी सी आइस क्रीम बची है

साहब नौकर से: ज़रा फ्रीज़ साफ कर डालो.
नौकर: ठीक है साहब.
साहब थोड़ी देर बाद: साफ कर दिया?
नौकर: नहीं साहब, बस थोड़ी सी आइस क्रीम बची है!

12/20/2009

पहले ज़मीन बाँटी थी फिर घर भी बँट गया

पहले ज़मीन बाँटी थी फिर घर भी बँट गया
इन्सान अपने आप में कितना सिमट गया

अब क्या हुआ कि ख़ुद को मैं पहचानता नहीं
मुद्दत हुई कि रिश्ते का कुहरा भी छँट गया

हम मुन्तज़िर थे शाम से सूरज के, दोस्तो!
लेकिन वो आया सर पे तो क़द अपना घट गया

गाँवों को छोड़ कर तो चले आए शहर में
जाएँ किधर कि शहर से भी जी उचट गया

किससे पनाह मांगे कहाँ जाएँ क्या करें
फिर आफ़ताब रात का घूँघट उलट गया

सैलाब-ए-नूर में जो रहा मुझ से दूर-दूर
वो शख़्स फिर अन्धेरे में मुझसे लिपट गया

रचनाकार: शीन काफ़ निज़ाम
कविता कोश

12/18/2009

दिल है उन का

अब कभी भी न पियूं गा बारहा तौबा किया
जब दिखा जामो सुबू उस का सदा उल्टा किया

इश्क़ ने सिखला दिया कि बेवफाई भी है कुछ
मेरे ही महबूब ने पूरा नहीं वादा किया

गर्दिशे अय्याम का रुख़ जिस ने पहचाना नहीं
अपने हक़ में यह नहीं उस क़ौम ने अच्छा किया

बंद कर दें वह जफ़ाएं यह तवक़्क़ो है फुज़ूल
इन हसीनों ने बताओ है भला किस का किया

गैर के जब हो लिए वोह क्यों शिकायत तुम को है
दिल है उनका, तू ने हामिद शिकवा ए बेजा किया

कौन है गदहे का बच्चा

एक साहब का दरवाज़ा जोर से बजा!
वह गुस्से में दरवाजे के पास गए और बोले "कौन है गदहे का बच्चा?"
बाहर से आवाज़ आयी "अब्बू मैं हूँ!"

12/17/2009

Nature v/s Appearance

In pursuit of one I wander whole day
“They’re mine I’m theirs” whom can I say

I’m frank & simple people don’t believe me
Their search is for those fetching stars from sky

To appearance, inner quality has lost ground
More praise, than natural beauty, make-up has found

There’re plastic banquets not rose in pot
In paper work, jasmine smell people have sought

Attracted to luxury life, we never think
It leaves thousands at starvation brink

Yet some wise men can distinguish
The original pure from fake rubbish

12/16/2009

जहन्नम से बोल रहा हूँ

एक साहब को रात चार बजे किसी ने फोन किया
उन्हों ने फोन रिसीव किया तो दूसरी तरफ से आवाज़ आई. "आप कहाँ से बोल रहे हैं?"
साहब ने ग़ुस्से में कहा "नरक से"
उधर से आवाज़ आई: " यही मालूम करना था! मुझे शक था कि तुम जैसा पापी कहीं "स्वर्ग" में तो नहीं पहुँच गया है.

12/13/2009

हकीम जी दवा कब लूँ

एक साहब जिन्हें मोटापे कि शिकायत थी हकीम जी के पास इलाज के लिए गए!
हकीम जी: अच्छा बताओ तुम रोज़ाना कितना खाना खाते हो! इसी के हिसाब से मैं तुम्हें दवा दूं गा!
बीमार: ज़यादा नहीं हकीम साहब! नाश्ते में २० रोटी, और एक लीटर चाये! दोपहर और रात में ३० रोटी, २० प्लेट चावल और १५ प्लेट सब्जी.
हकीम जी: अच्छा एक काम करो! अब नाश्ते में १० रोटी और आधा लीटर चाए लो. दोपहर और रात में १५ रोटी, १० प्लेट चावल और ८ प्लेट सब्जी खाओ. उम्मीद है कि तुम्हारा मोटापा कम हो जाये गा!
बीमार: अच्छा हकीम साहब, बहुत शुक्रिया! अब मैं चलता हूँ. ...थोड़ी दूर जा कर बीमार को कुछ याद आया और वह हकीम साहब के पास लौट कर आया!
बीमार: लेकिन हकीम जी आप ने यह तो नहीं बताया कि मैं खाने की यह मात्र नाश्ते के बाद लूं या दुपहर के खाने के बाद या शाम के खाने के बाद?

12/12/2009

ترک کر دیں وہ جفائیں

اب کبھی بھی نہ پیوں گا بار ہا توبہ کیا
جب دکھا جا م و سبو اس کا سدا الٹا کیا

عشق نے سکھلا دیا کہ بیوفائی بھی ہے کچھ
میرے ہی محبوب نے پورا نہیں وعدہ کیا

گردش ایام کا رخ جس نے پہچانا نہیں
اپنے حق میں یہ نہیں اس قوم نے اچھا کیا

ترک کر دیں وہ جفائیں یہ توقع ہے فضول
ان حسینوں نے بتاؤ ہے بھلا کس کا کیا

غیر کے جب ہو لئے وہ کیوں شکایت تم کو ہے
دل ہے ان کا تو نے حامد شکوہ بجا کیا

बस कान के चक्कर में खड़ा रहता है

बल कटवाते हुए हज्जाम के कुत्ते को करीब खड़ा देख कर गाहक ने कहा! "तुम्हारा कुत्ता बड़े धेयान से तुम्हें बल काटते हुए देख रहा है, लग रहा है कि यह कम उसे भुत पसंद है."
हज्जाम ने जवाब दिया, "जनाब पसंद की तो कोई बात नहीं है! हाँ कभी कभी किसी ग्राहक का कान कट कर नीचे गिर जाता है, बस इसी चक्कर में वह यहाँ खड़ा रहता है!"

12/11/2009

अगर यूँ ही यह दिल सताता रहे गा

अगर यूँ ही यह दिल सताता रहे गा
तो इक दिन मेरा जी ही जाता रहे गा

मैं जाता हूँ दिल को तेरे पास छोड़े
मेरी याद तुझ को दिलाता रहे गा

गली से तेरी दिल को ले तो चला हूँ
मैं पहुंचूं गा जब तक, यह आता रहे गा

जफा से ग़रज़ इम्तेहाने वफा है
तू कि कब तलुक आज़माता रहे गा

क़फ़स में कोई, तुम में से,हम सफीरो
ख़बर कल की हम को सुनाता रहे गा

ख़फा हो के, ऐ दर्द, मर तू चला तो
खान तक ग़म अपना छिपता रहे गा


रचनाकार: ख्वाजा मीर दर्द देहलवी

12/09/2009

मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको

आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को
मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको
जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर
मर गई फुलिया बिचारी कि कुएँ में डूब कर
है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी
आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी
चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा
मैं इसे कहता हूँ सरजूपार की मोनालिसा
कैसी यह भयभीत है हिरनी-सी घबराई हुई
लग रही जैसे कली बेला की कुम्हलाई हुई
कल को यह वाचाल थी पर आज कैसी मौन है
जानते हो इसकी ख़ामोशी का कारण कौन है

थे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट को
सो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट को
डूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत से
घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से
आ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात में
क्या पता उसको कि कोई भेड़ि़या है घात में
होनी से बेख़बर कृष्ना बेख़बर राहों में थी
मोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाहों में थी
चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गई
छटपटाई पहले, फिर ढीली पड़ी, फिर ढह गई
दिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गया
वासना की आग में कौमार्य उसका जल गया

और उस दिन ये हवेली हँस रही थी मौज में
होश में आई तो कृष्ना थी पिता की गोद में
जुड़ गई थी भीड़ जिसमें ज़ोर था सैलाब था
जो भी था अपनी सुनाने के लिए बेताब था
बढ़ के मंगल ने कहा काका तू कैसे मौन है
पूछ तो बेटी से आख़िर वो दरिंदा कौन है
कोई हो संघर्ष से हम पाँव मोड़ेंगे नहीं
कच्चा खा जाएंगे ज़िन्दा उनको छोडेंगे नहीं
कैसे हो सकता है होनी कह के हम टाला करें
और ये दुश्मन बहू-बेटी से मुँह काला करें
बोला कृष्ना से- बहन, सो जा मेरे अनुरोध से
बच नहीं सकता है वो पापी मेरे प्रतिशोध से

पड़ गई इसकी भनक थी ठाकुरों के कान में
वे इकट्ठे हो गए थे सरचंप के दालान में
दृष्टि जिसकी है जमी भाले की लम्बी नोक पर
देखिए सुखराज सिंग बोले हैं खैनी ठोंक कर
क्या कहें सरपंच भाई! क्या ज़माना आ गया
कल तलक जो पाँव के नीचे था रुतबा पा गया
कहती है सरकार कि आपस मिलजुल कर रहो
सुअर के बच्चों को अब कोरी नहीं हरिजन कहो

देखिए ना यह जो कृष्ना है चमारों के यहां
पड़ गया है सीप का मोती गँवारों के यहां
जैसे बरसाती नदी अल्हड़ नशे में चूर है
हाथ न पुट्ठे पे रखने देती है, मगरूर है
भेजता भी है नहीं ससुराल इसको हरखुआ
फिर कोई बाहों में इसको भींच ले तो क्या हुआ
आज सरजू पार अपने श्याम से टकरा गई
जाने-अनजाने वो लज्जत ज़िंदगी की पा गई
वो तो मंगल देखता था बात आगे बढ़ गई
वरना वह मरदूद इन बातों को कहने से रही

जानते हैं आप मंगल एक ही मक्कार है
हरखू उसकी शह पे थाने जाने को तैयार है
कल सुबह गरदन अगर नपती है बेटे-बाप की
गाँव की गलियों में क्या इज्जत रहेगी आपकी´
बात का लहजा था ऐसा ताव सबको आ गया
हाथ मूँछों पर गए माहौल भी सन्ना गया
क्षणिक आवेश जिसमें हर युवा तैमूर था
हाँ, मगर होनी को तो कुछ और ही मंज़ूर था
रात जो आया न अब तूफ़ान वह पुर ज़ोर था

भोर होते ही वहाँ का दृश्य बिलकुल और था
सिर पे टोपी बेंत की लाठी संभाले हाथ में
एक दर्जन थे सिपाही ठाकुरों के साथ में
घेरकर बस्ती कहा हलके के थानेदार ने -
`जिसका मंगल नाम हो वह व्यक्ति आए सामने´
निकला मंगल झोपड़ी का पल्ला थोड़ा खोलकर
एक सिपाही ने तभी लाठी चलाई दौड़ कर
गिर पड़ा मंगल तो माथा बूट से टकरा गया
सुन पड़ा फिर `माल वो चोरी का तूने क्या किया´
`कैसी चोरी माल कैसा´ उसने जैसे ही कहा
एक लाठी फिर पड़ी बस, होश फिर जाता रहा
होश खोकर वह पड़ा था झोपड़ी के द्वार पर

ठाकुरों से फिर दरोगा ने कहा ललकार कर -
`मेरा मुँह क्या देखते हो! इसके मुँह में थूक दो
आग लाओ और इसकी झोपड़ी भी फूँक दो´
और फिर प्रतिशोध की आंधी वहाँ चलने लगी
बेसहारा निर्बलों की झोपड़ी जलने लगी
दुधमुँहा बच्चा व बुड्ढा जो वहाँ खेड़े में था
वह अभागा दीन हिंसक भीड़ के घेरे में था
घर को जलते देखकर वे होश को खोने लगे
कुछ तो मन ही मन मगर कुछ ज़ोर से रोने लगे

´´ कह दो इन कुत्तों के पिल्लों से कि इतराएँ नहीं
हुक्म जब तक मैं न दूँ कोई कहीं जाए नहीं ´´
यह दरोगा जी थे मुँह से शब्द झरते फूल से
आ रहे थे ठेलते लोगों को अपने रूल से
फिर दहाड़े "इनको डंडों से सुधारा जाएगा
ठाकुरों से जो भी टकराया वो मारा जाएगा"
इक सिपाही ने कहा "साइकिल किधर को मोड़ दें
होश में आया नहीं मंगल कहो तो छोड़ दें"
बोला थानेदार "मुर्गे की तरह मत बांग दो
होश में आया नहीं तो लाठियों पर टांग लो
ये समझते हैं कि ठाकुर से उनझना खेल है
ऐसे पाजी का ठिकाना घर नहीं है जेल है"

पूछते रहते हैं मुझसे लोग अकसर यह सवाल
`कैसा है कहिए न सरजू पार की कृष्ना का हाल´
उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार को
सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को
धर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को
प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को
मैं निमंत्रण दे रहा हूँ आएँ मेरे गाँव में
तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में
गाँव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही
या अहिंसा की जहाँ पर नथ उतारी जा रही
हैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिए
बेचती है जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए !

रचनाकार: अदम गोंडवी

11/15/2009

Female Embryo

God bless you, let me open my eye
To walk on earth and live under sky

I want to adorn the garden of the world
With me becoming flower blossoming from bud

Remember mother! You were once like me
Had been killed, the world you couldn’t see

I won’t be a burden on you, be dad sure
My sweet smiles will your troubles cure

I’ll be with you where touches need
In me you will find a friend in deed

Stop hating the half of human being
Without which was impossible your even being

5/20/2009

Work to please others

Under the sky in winter poor’s troubles nights
People deprived of breads ’slice
To support the families child labor
Suicide in depression of the cultivator

Millionaires residing in splendid castles
Gorging delicious foods just like cattles
Descendents sustaining on inheritance left
Hedonistic tired of leisure and rest

Civilized twenty first century is so
People aim money and to desires they bow
Full of paradoxes mentioned above
Riches from rich to poor do not go

People are in quest for a valid solution
For the biggest challenge called environmental pollution
Many isms they applied but failed all
Peace does not answer though repeatedly they it call

The teachings of Islam let us put in practice
Partiality will run away dominate will justice
All of us are descendents of Adam and Eve
Why there is attitude of ‘I and you’

Dream High

You need no money for dreaming high
For man is wondrous creation,think of reaching sky
Going to the moon was impossible task
In space man flying ,ws a foolish talk

None had thought such wide communications
There were to regions confined relations
Now a days all things have become common
We govern space and even earth ocean

Neverthless millions suffer from hunger
Neuclear arms put the humans in danger
Don’t the widow’s mourn yoou listen ?
Orphan’a cries without parents and kin.

No one is free to serve the weak
Only more money ,wealth they seek
Chastity, dignity are at stake
Morality has been sold as hot cake

Stand up and the tears of oppressed wipe
Help them smile and lead happy life
Teach the world you the lessons of humanity
Make the world peaceful ,spread morality

5/18/2009

Crescent In Dark Night

The crescent in dark night
Reminds me of eye brow shining bright

People looked for Eid moon in the sky
In her lightning face found the same I

How you dare show?O deer!
Your eye to my dear?

Your borrowed beauty stands nowhere
Once with eyes of hers you compare

The World To Be Left Tomorrow

One asked me ‘why no interest you show
In material gains and world rainbow?’

Difficult question and tough to reply
So, a lot of thought to it gave I

Come, live and go the world is so!
We desire mortal world to be left tomorrow!

Pleasant life of world none should abstain
If got without weak and poor’s exploitation

Garlands seem beautiful in leaders’ neck
Scores of flowers when put to death in a moment

Rotational shift of money in people’s hand
Taught me a lesson and made me understand

Thou shouldn’t be proud of what can be
In other’s possession who is weaker than thee

Materials satisfy hunger and not the soul
Achievement of spirituality should too be our goal

Pain Of Love

O pain of love! You would be homeless no more
Come, my lone heart is waiting for you

A dwelling unpopulated so far
This is decorated for some one lucky

Billions live in world desiring necklace of pearls
But a few are those who dive in sea

Strong lion believes in oneness of partner
More and more but seek we